रावण के अनमोल विचार

लंकापति रावण से कौन परिचित नहीं होगा। वह लंका के राजा थे इसलिए भी यह बहुत लोकप्रिय थे। रावण एक ऐसा पात्र हैं, जिनके कारण राम जी के उज्जवल चरित्र के बारे में पता चलता है। यह दशानन के नाम से भी पुकारे जाते हैं। इनके पिता का नाम विश्रवा था।  यह शिव जी के परम भक्त थे। अपने अहंकार की वजह से श्रीराम के द्वारा इनका अंत हुआ था। 


आइए, रावण  के कहे कुछ अनमोल विचार को पढ़ते हैं और रावण के बारे मे कुछ नया जानते हैं :

  • शुभ कार्य जितनी जल्दी हो, उतनी जल्दी कर लेना चाहिए और अशुभ कार्य को जितना हो सके, उतना ही टाल देना चाहिए। इससे ना ही हम खुद को बल्कि दूसरों को भी नुकसान होने से बचा सकते हैं।
  • कभी भी अपने जीवन के राज को किसी को भी नहीं बताने चाहिए; चाहे वो आपका भाई ही क्यों ना हो?
  • कभी भी अपने प्रतिद्वंदी को कमजोर मत समझो।
  • मुझे अपनी शक्तियों पर अहंकार करने का पूरा अधिकार है; ये शक्तियां मुझे कोई दान में प्रदान नहीं हुई, इसके लिए मैंने कठोर तपस्या की है।
  • जो व्यक्ति स्वयं अपने हाथों से अपनी कृति को धूल में मिला देता है; उसका देवता भी समान नहीं करेंगे।
  • अपने सारथी, पहरेदार,  रसोईया और भाई के शत्रु मत बनो। ये सारे आपको किसी भी वक्त नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • ये मत सोचो कि तुम हमेशा के लिए विजेता रहोगे; यहां तक कि अगर तुम हमेशा से जीतते आ रहे हो तब भी।
  • गुरु से कुछ सीखना है तो पहले उसके चरणों में जाना पड़ता है।
  • जितनी शक्ति हो उतनी ही उड़ान भरना अन्यथा गिरकर प्राण गवाने पड़ते हैं।
  • हमेशा उन मंत्रियों पर भरोसा करो; जो तुम्हारी आलोचना करते हैं।
  • जब भी कोई संकल्प करो तो उसे तुरंत पूरा कर लो।
  • सदा स्वाभिमान करना झूठा अभिमान नहीं है।
  • शत्रु और रोग इन्हें कभी छोटा नहीं समझना चाहिए।
  • युद्ध संहारक, विनाशक होता है। युद्ध में केवल खोया जाता है ... पाया कुछ भी नहीं जाता।